बीजेपी की 4 राज्यों में बंपर जीत के बावजूद Rajasthan में एक खेमे में क्यों है बैचेनी?

बीजेपी की 4 राज्यों में बंपर जीत के बावजूद Rajasthan में एक खेमे में क्यों है बैचेनी?

  जयपुर. उत्तर प्रदेश, पंजाब, उत्तराखंड, गोवा और मणिपुर राज्यों के आये चुनाव परिणाम में जहां कांग्रेस (Congress) का सूपड़ा साफ हो गया है वहीं बीजेपी (BJP) का चार राज्यों में राजतिलक का रास्ता साफ हो गया. अब अगले चुनाव राजस्थान, गुजरात और मध्यप्रदेश (Rajasthan, Gujarat and Madhya Pradesh) जैसे राज्यों में है. इनमें बीजेपी और कांग्रेस दोनों के लिए अगली सबसे बड़ी चुनौती राजस्थान है. अगर केवल बीजेपी की बात करें तो उसके लिए राजस्थान में चुनौती यह है कि 2023 का चुनाव सीएम फेस के साथ लड़ा जाए या उसके बिना. अगर सीएम फेस (CM Face) हो तो कौन होगा?

राजस्थान बीजेपी में सीएम फेस के कई चेहरे आगे आ रहे हैं. लेकिन असली चुनौती वसुंधराराजे को सीएम फेस बनाने या नहीं बनाने को लेकर है. चार राज्यों में बीजेपी की बंपर जीत का सीधा असर राजे की सीएम फेस बनने की कोशिशों पर पड़ सकता है. राजे को फिलहाल इस कोशिश में इन नतीजों के बाद झटका लग सकता है. दूसरी तरफ इस जीत की खुशी राजस्थान में भी संगठन के नेताओं को यूपी से कम नहीं है. सतीश पूनिया की अगुआई में राजस्थान बीजेपी के नेताओं ने तो बुलडोजर पर जयपुर में विजय जुलूस निकाला.

राजे के शक्ति प्रदर्शन में पार्टी के 58 विधायक शरीक हुए
चार राज्यों में जीत के बाद राजस्थान में आखिर पार्टी के एक खेमे में इतना उत्साह दूसरे खेमे में बैचेनी की वजह को समझने के लिए 08 मार्च से घटनाक्रम को समझना होगा. पांच राज्यों के चुनाव नतीजों से दो दिन पहले यानी आठ मार्च को अपने जन्मदिन पर वसुंधराराजे ने जिस तरह से शक्ति प्रदर्शन किया वो बीजेपी नेतृत्व के लिए चिंता की नई लकीर है. राजे के इस शक्ति प्रदर्शन में न सिर्फ हजारों की भीड़ पहुंची बल्कि पार्टी के 58 विधायक भी उस जलसे में शामिल हुए थे.

अरुण सिंह बोले बीजेपी में व्यक्तिवाद नहीं चलता
इस शक्ति प्रदर्शन के बाद राजस्थान बीजेपी के प्रभारी अरुण सिंह को कहना पड़ा कि बीजेपी में व्यक्तिवाद नहीं चलता. राजे के इस शक्ति प्रदर्शन के मायने ये थे कि पार्टी को संदेश दिया जा सके कि राजस्थान में बीजेपी की वे सबसे लोकप्रिय नेता हैं. जानकार इसे राजे की पार्टी नेतृत्व पर दबाव बनाने की रणनीति भी मान रहे हैं ताकि राजस्थान में पार्टी की कमान उन्हें सौंप दी जाए. दूसरी तरफ 2018 में वसुंधरा राजे की अगुआई में विधानसभा चुनाव हारने के बाद ही बीजेपी नेतृत्व ने इस रणनीति पर काम शुरू कर दिया था कि राजस्थान में 2023 का चुनाव सामूहिक नेतृत्व और पीएम नरेंद्र मोदी के फेस पर लड़ा जाएगा.

केंद्रीय नेतृत्व ने नेताओं की फौज खड़ी कर दी
इस दिशा काम काम करते हुए केंद्रीय नेतृत्व ने राजे के विकल्प के रूप में करीब आधा दर्जन नेताओं की फौज खड़ी कर दी. उसमें केंद्रीय मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, बीजेपी प्रदेश अध्यक्ष सतीश पूनिया, लोकसभा अध्यक्ष ओम बिड़ला और सासंद दीयाकुमारी जैसे चेहेरे प्रमुख हैं. लेकिन बीजेपी का केंद्रीय नेतृत्व और वसुंधरा राजे दोनों ही अगली रणनीति के लिए पांच राज्यों के चुनाव नतीजों का इंतजार कर रहे थे. इन चुनाव से ये देखना था कि बीजेपी की राष्ट्रवाद की लहर अभी भी मजबूत है या कमजोर पड़ चुकी है.

बीजेपी के पास है ये विकल्प
बीजेपी का सीधा गणित है अगर राष्ट्रवाद की लहर चुनाव में काम कर रही हो तो फिर सीएम फेस की खास जरुरत नहीं है. पार्टी बिना फेस के भी चुनाव जीत सकती है. ऐसे में राजस्थान में सामूहिक नेतृत्व की अपनी अब तक की रणनीति पर आगे बढ़ा जा सकता है. यूपी, उतराखंड, गोवा और मणिपुर में बीजेपी पहले से सत्ता में थी लिहाजा मुख्यमंत्रियों के फेस चुनाव में थे. लेकिन सीएम से अधिक सभी राज्यों में पीएम मोदी का फेस और राष्ट्रवाद की लहर ने इस बार भी अधिक काम किया. सिर्फ यूपी का अपवाद छोड़ दे तो यूपी में पीएम मोदी के साथ सीएम योगी भी लोकप्रिय चेहरा थे. उतराखंड में तो तीन बार सीएम बदलने के बावजूद बीजेपी ने बंपर जीत दर्ज की जिसे पीएम मोदी की लोकप्रियता का ही चमत्कार माना जा रहा है.