महिला के साथ नेता के बेटे की चैट वायरल: राजस्थान के 2 नेताओं से केजरीवाल ने कहा- नो एंट्री; अपने वकील के खिलाफ खड़े हुए मुवक्किल
सोशल मीडिया नेताओं और उनके बेटों के लिए दो धारी तलवार से कम नहीं है। जहां कई फायदे हैं तो सबसे बड़ा डर कभी भी कुछ भी वायरल होने का है। ऐसा ही एक नेता पुत्र के साथ हुआ। महिला के साथ चैट वायरल हो गई। हमेशा ताक में रहने वाले विरोधी चैट वायरल होते ही एक्टिव मोड में आ गए। परेशान नेता पुत्र ने थाने में शिकायत देकर फर्जी चैट वायरल करके छवि खराब करने का केस कर दिया। नेता पुत्र सफाई देते-देते थक गए हैं। कौन सच्चा है, कौन झूठा है, यह भी अभी साफ नहीं है, क्योंकि आरोपी पकड़ से बाहर है। वैसे भी इन मामलों में सफाई देने का खास फायदा नहीं है, क्योंकि राजनीतिक विरोधियों के चरित्र हनन प्रकोष्ठ भी तो सजग-सचेत हैं।
गुजरात दौरे में बड़े नेता से मुलाकात से विपक्षी पार्टी में नए समीकरण
चार राज्यों में जीत के बाद प्रदेश की विपक्षी पार्टी के मुखिया बाग-बाग हैं। संघनिष्ठ संगठन मुखिया को अब समीकरण अपने अनुकूल नजर आने लगे हैं। हाल ही उनके गुजरात दौरे की खूब चर्चा है। गुजरात दौरे में उनकी एक बड़े नेता से मुलाकात की चर्चा है। इस मुलाकात के कारण ही दिल्ली में उन्होंने अपना प्रोग्राम आगे किया। होली मिलन के नाम पर संगठन मुखिया ने कॉन्स्टीट्यूशन क्लब में पहले लंच रखा, लेकिन बड़े नेता से मुलाकात के कारण देरी हुई तो आनन-फानन में दिन के प्रोग्राम को डिनर में बदला गया। गुजरात में बड़े नेता से हुई मुलाकात को काफी अहम माना जा रहा है। आगे संगठन मुखिया के गुजरात दौरे भी बढ़ने वाले हैं। सियासी जानकार मुलाकात और दौरों को आसानी से डिकोड कर सकते हैं।
दिल्ली सीएम का राजस्थान के दो नेताओं को टका सा जवाब
आम आदमी पार्टी की पंजाब जीत के बाद अब प्रदेश के कई नेताओं को सपने में मुख्यमंत्री की कुर्सी नजर आने लगी है। सियासत में कब कौन गेम चेंजर साबित हो जाए, कहा नहीं जा सकता। दिल्ली सीएम से मिलने के लिए अब कई नेता टाइम मांग रहे हैं। सियासी हलकों में इस बात की भी चर्चाएं हैं कि पिछले दिनों प्रदेश के दो नेता अलग-अलग समय में दिल्ली सीएम से मिल चुके हैं, लेकिन दोनों को ही टका सा जवाब मिला। आगे और भी कई नेता कतार में है, लेकिन फिलहाल नो वैकेंसी का बोर्ड है। अब तक कोशिश कर चुके नेताओं का अनुभव है कि दिल्ली की सत्ताधारी पार्टी में एंट्री आसानी से नहीं होगी।
सत्ताधारी पार्टी के विधायकों की चर्चाओं में 2023 का डर
लोकलुभावना बजट पेश करने के बाद प्रदेश के मुखिया भले रोज बधाइयां ले रहे हों, लेकिन सियासी जानकार कुछ और ही इशारा कर रहे हैं। तमाम दावों के बावजूद सत्ताधारी पार्टी के विधायक 2023 की चुनौतियों के बारे में अभी से परेशान हैं। कुछ तेजतर्रार विधायकों ने हारने वाले मंत्रियों की लिस्ट बना रखी है, कुछ पूरे राजस्थान में सत्ताधारी पार्टी की संभावित सीटों को गिनकर सेफोलॉजिस्ट बन रहे हैं। सारी चिंताओं का सार यह है कि सिविल लाइंस के चश्मे से जो सियासी धरातल दिखाया जा रहा है, वह असल में सियासी मृगमरीचिका है। इस सियासी मृग मरीचिका के फेर से कई निकलने का मन बना चुके हैं, बस मौके की तलाश में हैं।
गांधी परिवार पर सवाल उठाए तो वकील के खिलाफ क्लाइंट
ऐसा बहुत कम होता है कि कोई मुवक्किल ही अपने वकील के खिलाफ तोल ठोककर खड़ा हो जाए,लेकिन सियासत में कुछ भी संभव है। सुप्रीम कोर्ट के जाने माने वकील और पूर्व केंद्रीय मंत्री ने कांग्रेस की हार के बाद गांधी परिवार पर सवाल उठाए तो प्रदेश के मुखिया सबसे पहले ढाल बनकर खड़े हुए। जाने-माने वकील को खरी खोटी सुनाई। जाने-माने वकील प्रदेश के मुखिया की तरफ से कई बार पैरवी करते रहे हैं, मतलब प्रदेश के मुखिया भी मुवक्किल रहे हैं। इस बार मुवक्किल वकील के खिलाफ खड़ा हो गया। वैसे कमजोर टाइम में प्रदेश के मुखिया ही गांधी परिवार की ढाल बनकर खड़े हुए हैं।
विकास प्राधिकरण ने करवाए मंत्रियों में झगड़े
राजधानी में विकास बनाम विनाश के चक्रव्यूह में फंसे प्राधिकरण के तोड़फोड़ दस्ते ने मंत्रियों तक को लड़वा दिया। विकास बनाम विनाश के नरेटिव को बनाने में तोड़फोड़ विंग के कारनामे ही ज्यादा जिम्मेदार हैं। इस विंग में लगे पुलिस अफसरों के चर्चे कई मंत्री सुना रहे हैं। एक जागरूक नेता तो इस विंग के असली वॉर रूम का प्लान ही लेकर आ गए। बताया जाता है कि हर शाम विकास को विनाश बनाने के लिए तोड़फोड़ दस्तों के अफसर राजधानी के सिविल लाइंस से सटे एक निजी टावर में इकट्ठे होते हैं। यहीं से विकास और विनाश की रणनीति तय होती है, कहां तोड़फोड़ करनी है, कहां छोड़ना है, यह सब यहीं से तय होता है। इस तरह की चर्चाएं जब आम हो जाएं तो इमेज खराब होना स्वाभाविक है।
कतार में हाईकमिश्नर, कुआं प्यासे के इंतजार में
पुरानी कहावतें भले ही लोक व्यवहार के लंबे अध्ययन और अनुभव से बनी हों लेकिन आधुनिक राजनीति में रचे बसे नेताओं के आगे अक्सर फेल हो जाती हैं। कुआं प्यासे के पास नहीं आता वाली कहावत भी प्रदेश में फेल हो गई है। ग्रीन एनर्जी का फंड देने के इच्छुक एक बड़े देश के हाई कमिश्नर प्रदेश के मुखिया से मिलना चाहते हैं, लेकिन अभी तक मुलाकात तय नहीं हुई है। इससे पहले भी एक हाईकमिश्नर बिना मिले जा चुके हैंं। एक वॉचडॉग कम ऑब्जर्वर ने निवेश की संभावनाओं वाले देशों के प्रतिनिधियों से लगातार संपर्क की पैरवी की, लेकिन यहां उल्टा हो रहा है। अब देने वाले देश का हाईकमिश्नर मिलने के लिए मिन्नतें तो करने से रहा, आगे कोई दूसरा सजग नेता इस फंड को अपने स्टेट ले जाए तो अचंभा नहीं हो सकता। जब प्यासे को ही कुएं की फिक्र नहीं होगी तो कुआं क्यों चिंता करेगा?