IPL स्टार मुकेश चौधरी की पड़ोसन:जिसका फर्नीचर रखने से किया मना, उसी ने बच्चे की तरह संभाला, 'ओए-धोनी' बुलाने वाली बन गई CSK-खिलाड़ी की बहन
चेन्नई सुपर किंग्स (CSK) के मुकेश चौधरी 21 अप्रैल को मुंबई इंडियंस के खिलाफ तीन विकेट लेकर IPL स्टार बन गए हैं। मुंबई के खिलाफ मैच में मुकेश ने पहले ही ओवर में रोहित शर्मा और ईशान किशन को आउट किया। इसी के साथ वह CSK के पहले ऐसे गेंदबाज बन गए हैं, जिन्होंने पहले ओवर में दो विकेट लिए थे। मुकेश के लिए भीलवाड़ा के एक छोटे से गांव परदौड़ास से IPL तक का सफर इतना आसान नहीं था। हालांकि, इस सफर को आसान बनाने में मुकेश चौधरी की उस पड़ोसी महिला ने मदद की, जिसको मुकेश ने फर्नीचर रखने में मदद करने से इनकार कर दिया था। पढ़िए, जिस पड़ोसी की मदद करने के लिए मना कर दिया था। बाद में उससे कैसे जुड़ गया एक खास रिश्ता...
मुकेश चौधरी ने 21 अप्रैल की रात मुंबई इंडियन के खिलाफ तीन विकेट लिए। उन्होंने रोहित शर्मा, ईशान किशन और डोनाल्ड ब्रेविस को उल्टे पांव पवेलियन का रास्ता दिखा दिया। इसके लिए आईपीएल में पहली बार मुकेश चौधरी CSK के लिए 'मैन ऑफ द मैच' मिला। चौधरी के इस शानदार प्रदर्शन ने निश्चित रूप से उनके पिता और परिवार को गौरवान्वित किया है।
सपनों के लिए छोड़ा घर
मुकेश चौधरी अपने सपनों के लिए 10 साल की उम्र में ही घर छोड़ दिया। जयपुर में 4 साल की ट्रेनिंग के बाद पुणे चले गए। मुकेश ने यहीं बोर्डिंग स्कूल से साइंस स्टीम में अपनी पढ़ाई पूरी की। उनका परिवार उनसे पढ़ने पर फोकस करने के लिए कहता, जबकि मुकेश का मन क्रिकेट में रमता था। पुणे में मुकेश ने 4 क्रिकेट एकेडमी में ट्रायल दिया। एक में उसका सिलेक्शन हो गया। जहां से मुकेश ने डोमेस्टिक क्रिकेट के साथ IPL तक का सफर तय किया।
पड़ोसी ने मांगी मदद, चौधरी ने कर दिया इनकार
CSK प्लेयर मुकेश चौधरी जब 17 साल के थे, तब वह पुणे के कोथरूड में एक किराये के अपार्टमेंट में रहते थे। यह संयोग ही है कि मुकेश चौधरी से पहले इसी अपार्टमेंट में केदार जाधव और धीरज यादव भी रहे थे। इसी दौरान, उनकी पड़ोसी वैशाली सावंत ने मुकेश चौधरी से पूछा, ''क्या वे अपने फ्लैट का फर्नीचर कुछ समय के लिए उनके फ्लैट में रख सकती हैं ताकि घर में इंटीरियर का काम करा सकूं?'' उस वक्त उसने मना कर दिया और फर्नीचर उठाने में मदद करने से भी इनकार कर दिया।
'ओए धोनी' कह कर बुलाने वाली बन गई बहन
वैशाली सावंत उस वक्त को याद करती हुए बताती हैं कि मैंने उसे पहली बार 'ओए धोनी' कहकर बुलाया था। वैशाली हंसते कहती हैं कि जब उसने फर्नीचर अपने यहां रखने और उठाने में मदद करने से मना कर दिया। उस वक्त उसके व्यवहार को देखकर मैंने पूछा कि क्या फैमिली ने मैनर्स नहीं सिखाए? उसके बाद उसे शायद अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने फर्नीचर उठाकर रखवाने में मेरी मदद की। हालांकि, उस वक्त मुकेश को इस बात का अहसास नहीं था कि उसकी यही पड़ोसी आगे चलकर उसकी गुरु, कोच और बहन बन जाएगी।
वैशाली सावंत कहती है कि पड़ोसी के तौर पर मुकेश के हेक्टिक शेड्यूल का मुझे जल्द ही अंदाजा हो गया था। इसके बाद कई बार मन में ख्याल आता कि इतनी देर से थककर लौटा है, अब क्या करेगा। खाना बनाकर खाएगा या कहीं भूखा तो नहीं सो जाएगा। इस बीच, एक बार वह बीमार हो गया और खुद को अकेला महसूस करने लगा। उस वक्त मैंने मुकेश की अपने परिवार के बच्चे की तरह देखभाल की। खाने-पीने का ख्याल रखा। इस दौरान उसके साथ मेरी बॉन्डिंग भी अच्छी हो गई। इसके बाद खेल और पढ़ाई पर फोकस करने के लिए मोटिवेट किया। फर्श से अर्श और अर्श से फर्श पर पहुंचने वाले क्रिकटरों की कहानियां सुनाईं। उसका टाइम टेबल बनाने में मदद की।
जॉब को लेकर हुआ चिंतित तो पड़ोसी बहन ने उठाया खर्चा
एक दिन मुकेश ने कहा कि मुझे नौकरी खोजनी होगी, घर की आर्थिक हालत अच्छी नहीं है। अब गुजारा नहीं हो पा रहा है। मैंने पूछा कि तुम नौकरी क्यों करना चाहते हो? तुम्हारे खाने—पीने का खर्च में उठाऊंगी। तुम वादा करो कि कड़ी मेहनत करना जारी रखोगे और किसी गलत संगत में नहीं पड़ोगे। मैं उसकी हर गतिविधि पर नजर भी रखती थी। वह इतना प्यारा है कि उसने कभी शिकायत का मौका नहीं दिया। जल्द ही वह रणजी ट्रॉफी खेलने चला गया, जिससे उसकी आर्थिक स्थिति में भी सुधार आया। सावंत कहती हैं कि दो सीजन पहले वह आया और बोला कि अब नेट गेंदबाज के तौर पर नहीं जाएगा। बता दें कि मुकेश चौधरी पहले हैदराबाद और चेन्नई सुपरकिंग्स के लिए नेट गेंदबाज थे।
मैंने उसे समझाया कि तुम ऐसा कैसे कह सकते हो। नेट गेंदबाजी तुम्हारे लिए एक स्कूल की तरह है। तुमको सीखने के लिए मिल रहा है। तुम्हारा खेल अच्छा हो रहा है। इसके एक साल बाद ही वह सीएसके के लिए चुना गया और अब देखो छा गया, यह कहते हुए उनके चेहरे पर बड़ी सी मुस्कुराहट आ जाती है।
मुकेश चौधरी बोले- बहन ने दिया मेरा बहुत साथ
मुकेश चौधरी ने अपने शानदार प्रदर्शन के बाद कहा, ''मेरी यहां तक की यात्रा मुश्किल रही, लेकिन परिवार ने मेरा साथ दिया। जब मैं पुणे में अकेला था, तो मेरी बहन ने मेरा बहुत साथ दिया। उसके बिना मैं कुछ भी अच्छा नहीं कर पाता था। यहां तक कि जब मुझे चुना गया, तो उन्होंने मुझे अगले चरणों के बारे में सोचने और अच्छा करने के लिए कहा था।''